Wednesday, January 6, 2010

बेटी की विदाई

लाल साड़ी में
लिपटी ,
गहनों के
बोझ से दबी ,
मांग में सुर्ख
सिन्दूर डाले ,
चूड़ियों का
झंझावात समेटे ,
बिछिया और पायल को
चुप सा कराती ,
सकुचाती , लजाती
वो ,
मां के सीने से
चिपक गई ,
पिता जाने कहाँ ,
छुपा कर ,
आंसुओं का गुबार
निकाल रहे थे ,
छोटा भाई
छोटा था , इसलिए
भाई -भाई कहकर
उस रिश्ते के
तार को खींचती
चली गई .
दूर ---गली पार तक
चीखती रही ,
सीने से हूक
उठ रही थी ,
लग रहा था ,
अब , यही विदाई है .
वो , बेटी !!
मानो , भीड़ भरे
मेले में ,
किसी अपने का
हाथ छोड़कर ,
गुम होने जा रही हो ,
एक , बिछोह
तड़फ , वेदना , पीड़ा
सारी संवेदनाएं ,
तिरोहित सी हो रहीं थीं ,
यह परिवर्तन ,
अथाह क्षोभ भरा था ,
वो ,
खुद में ही
सिमट रही थी ,
रिश्तों का हुज्जूम
नए रिश्तों में ,
बंट रहा था ,
बेटी !!
तमाशबीन सी
सब गुण रही थी ,
उस छुअन को भी
जी रही थी , जो
माँ , ने कपोल पर दी थी ,
आँखें भरी हुईं थीं ,
सब कुछ ,
लुटा हुआ सा लग रहा था ,
लाल साड़ी में लिपटी ,
बेटी !!
बेघर होकर ,
नए घर में
गृहस्थ बसाने जो
जा रही थी ,
फिर से उजड़ने के लिए .
रेनू ....