Tuesday, July 6, 2010

अपलक

घर की 
दीवारों को देखकर ,
बातें कर रही हूँ ,
वही ,
पुरानी पेंटिंग , केनवास 
और कलेंडर टंगे हैं ,
सब जीवंत लगते हैं
कभी ,
पेंटिंग पास बुलाती है 
कभी ,
कलेंडर उड़ने लगता है ,
कभी ,
केनवास पर 
खिलते फूल 
खुशबू बिखरते हैं ,
दिल में, घुमड़ते 
बादलों से भाव 
कभी ,
लहू से ,प्रवाहित होते हैं 
कभी ,
जीवन के , तूफ़ान में 
सांसें सिहरती हैं ,
कभी ,
एक तारा सा 
बिखरता है आस -पास 
और मैं ,
दीवारों पर 
नज़रें गढ़ाए 
फिर से ,
देखती हूँ , अपलक |
रेनू शर्मा ...