Saturday, August 29, 2009

क्योंकि , मैं , माँ हूँ .


कितनी रातें जागकर

तुम्हें ,

थपथपाया था ,

अनगिनत पलों में

तुम्हें ,

सीने से लगाया था ,

बार -बार

ढाल बनकर

आ गई

तुम्हारे सामने

जब ,

पिता ने फटकारा है ,

कई बार ,

मन्दिर के आले से

पचास का नोट

निकल कर थमाया है ,

कितनी बार ,

रात के अंधेरे में

खिड़की से झांकती

तुम्हारी परछाईं देखकर

कुण्डी खोली है ,

अनेकों बार ,

पिता की खून

छलछलाती

आंखों के ताप से

तुम्हें , बचाया है ,


उलाहना नही देती ,

सुनहरे पलों को

जी रही हूँ ,

जब तुम ,

बोलते हो -

माँ !! ऐसा कैसे चलेगा ?

माँ !! तुम असहनीय हो ,

माँ !! तुम हमारे साथ नही रह सकती ,

माँ !! तुम्हारा क्या करें हम ?

माँ !! तुम मरती क्यों नही ?

तब तब , मैं ,

आँगन में दौड़ते

गिरते , उठाते

तुम्हारे क़दमों को देखकर

खुश होती हूँ ,

माँ , बोलते

तोतले शब्दों में

अमृत पान करती हूँ ,

भागकर आते हुए

मेरा आँचल

खींचकर

मचलने पर ,

मैं , मुग्ध होती हूँ ,

क्योंकि , मैं ,

तुम्हारी

माँ , हूँ ।

रेनू ....


Tuesday, August 4, 2009

मैं , जिंदगी हूँ .


पहाडों के शिखर से

कलकलाती , सरसराती

कभी ,

छलांग लगाती हूँ ,

कभी ,

जघन्य वन की

वक्र वीथियों से

सिमटती , सकुचाती

बहती हूँ ,

कभी ,

हरे -भरे मैदानों में

सरपट प्रवाहित

होती हूँ ,

मैं ,

निरंतर जीवंत

प्रानदायनी

नदिया सी

कभी ,

उच्च श्रृंगों पर

प्रतिष्ठित मणि सी

विराजती हूँ ,

कभी ,

बरसाती नाले सी

त्यक्त ,

अपने वजूद को

दर्शाती हूँ ,

कभी ,

विरल थपेडों को

झेलती ,

सुरसरी सी

पूज्यवान

जीवन चक्र के

वायु कृत आवेग को

स्वयं में ,

समाहित करती

हौले -हौले

सरकती हूँ ,

मैं , जिंदगी हूँ ।

रेनू ......