काल चेतना
अन्धकार से परे विचारों से परे
अहसासों से परे, एहसानों से परे
अभिमान से परे, विरक्ति के समीप
शक्ति के समीप, भक्ति के करीब
तुम्हारे भक्त ..
और
विरक्ति से परे, अभिव्यक्ति से परे
शक्ति से परे, भक्ति से परे
रौशनी सभी बसे शुद्धता सभी रचे
तुम ..
फिर भी है व्याप्त है, हर अभिव्यक्ति सभी
हर रचना सभी, तुम्हारी ही चेतना
फिर स्थिति पशोपेश की
किससे दूर जाने की राह है, किसके पास आने की चाह
जब
हो सर्वत्र तुम, तुम्हारी चेतना
और उसमे ओतप्रोत कालचेतना. विमल , भोपाल कालचेतना.
अहसासों से परे, एहसानों से परे
अभिमान से परे, विरक्ति के समीप
शक्ति के समीप, भक्ति के करीब
तुम्हारे भक्त ..
और
विरक्ति से परे, अभिव्यक्ति से परे
शक्ति से परे, भक्ति से परे
रौशनी सभी बसे शुद्धता सभी रचे
तुम ..
फिर भी है व्याप्त है, हर अभिव्यक्ति सभी
हर रचना सभी, तुम्हारी ही चेतना
फिर स्थिति पशोपेश की
किससे दूर जाने की राह है, किसके पास आने की चाह
जब
हो सर्वत्र तुम, तुम्हारी चेतना
और उसमे ओतप्रोत कालचेतना. विमल , भोपाल कालचेतना.