पहाडों के शिखर से
कलकलाती , सरसराती
कभी ,
छलांग लगाती हूँ ,
कभी ,
जघन्य वन की
वक्र वीथियों से
सिमटती , सकुचाती
बहती हूँ ,
कभी ,
हरे -भरे मैदानों में
सरपट प्रवाहित
होती हूँ ,
मैं ,
निरंतर जीवंत
प्रानदायनी
नदिया सी
कभी ,
उच्च श्रृंगों पर
प्रतिष्ठित मणि सी
विराजती हूँ ,
कभी ,
बरसाती नाले सी
त्यक्त ,
अपने वजूद को
दर्शाती हूँ ,
कभी ,
विरल थपेडों को
झेलती ,
सुरसरी सी
पूज्यवान
जीवन चक्र के
वायु कृत आवेग को
स्वयं में ,
समाहित करती
हौले -हौले
सरकती हूँ ,
मैं , जिंदगी हूँ ।
रेनू ......
sunder,utkrasta, bhaavpoorn shabdik naritaye. Aap bhi hole hole badte rahe aise mai umeed karta hoon.
ReplyDeleteMangal ho.