Tuesday, August 4, 2009

मैं , जिंदगी हूँ .


पहाडों के शिखर से

कलकलाती , सरसराती

कभी ,

छलांग लगाती हूँ ,

कभी ,

जघन्य वन की

वक्र वीथियों से

सिमटती , सकुचाती

बहती हूँ ,

कभी ,

हरे -भरे मैदानों में

सरपट प्रवाहित

होती हूँ ,

मैं ,

निरंतर जीवंत

प्रानदायनी

नदिया सी

कभी ,

उच्च श्रृंगों पर

प्रतिष्ठित मणि सी

विराजती हूँ ,

कभी ,

बरसाती नाले सी

त्यक्त ,

अपने वजूद को

दर्शाती हूँ ,

कभी ,

विरल थपेडों को

झेलती ,

सुरसरी सी

पूज्यवान

जीवन चक्र के

वायु कृत आवेग को

स्वयं में ,

समाहित करती

हौले -हौले

सरकती हूँ ,

मैं , जिंदगी हूँ ।

रेनू ......

1 comment:

  1. sunder,utkrasta, bhaavpoorn shabdik naritaye. Aap bhi hole hole badte rahe aise mai umeed karta hoon.
    Mangal ho.

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