दीवारों को देखकर ,
बातें कर रही हूँ ,
वही ,
पुरानी पेंटिंग , केनवास
और कलेंडर टंगे हैं ,
सब जीवंत लगते हैं
कभी ,
पेंटिंग पास बुलाती है
कभी ,
कलेंडर उड़ने लगता है ,
कभी ,
केनवास पर
खिलते फूल
खुशबू बिखरते हैं ,
दिल में, घुमड़ते
बादलों से भाव
कभी ,
लहू से ,प्रवाहित होते हैं
कभी ,
जीवन के , तूफ़ान में
सांसें सिहरती हैं ,
कभी ,
एक तारा सा
बिखरता है आस -पास
और मैं ,
दीवारों पर
नज़रें गढ़ाए
फिर से ,
देखती हूँ , अपलक |
रेनू शर्मा ...