Tuesday, June 15, 2010

शमशान होना

शमशान का 
वीराना , भयानकता और 
अटल सत्य 
अब ,
बदल सा गया है ,
बाग़ -बगीचे 
हरियाली , मंदिर और 
नदी का किनारा ,
पिकनिक स्थल सा 
लगता है ,
कंधे पर उठाया 
तन का बोझ 
मन पर भारी सा 
पड़ता है ,
धूं धूं कर 
सुलगती 
चिता को देखकर 
अपने अस्तित्व का 
आभास होता है ,
आस -पास 
भटकते कुत्तों से 
कभी न मिलने की 
प्रतिज्ञा होती है ,
पल भर का 
सन्नाटा 
दस कदम दूर जाकर 
टूट जाता है 
हर कस्बे के 
छोर पर ,
टीन की चादर के नीचे 
राख के ढेर में 
श्वान क्रीडा करते हैं ,
वहीँ ,
बीस कदम दूर 
देशी शराब की दुकान पर 
जीवन के सत्य से 
नाता तोड़कर 
इंसान 
शमशान होने का 
प्रयास करता है . 

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