Sunday, June 20, 2010

परम पिता

हर -पल 
पिता से मिलन की चाहत 
हमें ,
अनवरत 
दौड़ाती है ,
जन्म के पल 
से ही 
प्राणी !!
समय चक्र पर 
आरूढ़ हो 
पंच्तात्वा पृथ्वी की 
गोद में 
कभी ,
हँसता , खेलता , भागता 
कभी ,
समाधिस्थ हो 
पंचतत्व को जानता हुआ 
उस ,
परमपिता के 
साए से लिपटने की 
लालसा लिए चलता ही 
जाता है ,
कालचक्र का स्वामी !! 
महाकाल ही ,
हमारा पिता है ,
पिता के 
सर्वांश में 
अपने ,
सारांश को 
घोलने के लिए ही ,
जीवन पथ ,
पिता पथ पर ,
अग्रसित है . 
रेनू शर्मा ....

1 comment:

  1. सामयिक और सुन्दर रचना. आभार.

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