Friday, March 9, 2012

सब बदल गया

सब , बदल गया है
अब , न
आँगन के झज्जे पर
गोरैया घोंसला
बनती है ,
और न ,
बिना आवाज के
बिल्ली दूध
पी पाती है,
अब , न
दरवाजे  पर
गाय रंभाती है ,
और , न
अरगनी पर बैठ कर
कौआ,
कांव -कांव  करता है ,
अब , न
कूंए की मुंडेर पर
चूड़ियाँ खनकती हैं ,
और , न
नीम की डाली पर
सावन के झूले
पड़ते हैं ,
अब , न
बिटिया पीहर
आती है ,
और , न
छत की खुली हवा मैं ,
पतंगें उड़तीं हैं ,
अब , न
चबूतरे पर बैठक जुडती है ,
और ,न
हंसी के ठहाकों से ,
घर चहकता है ,
अब , तो
सब , बदल सा गया है .


रेनू शर्मा 

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