Friday, March 9, 2012

अंशांश

कुछ भी ,
हलक से नहीं
उतरता ,
माथे की नसें
खींचती चली जातीं हैं,
आँखें पल -पल
विस्फारित होती
जातीं हैं ,
सांसें , धौकनी बन जातीं हैं ,
जब ,
प्रेतात्मा सी ,
उसकी जिद ,
कान के  परदे ,
फाड़ रही होती है ,
वो ,
कैसे ,कह पाता है ,
सब , कुछ
लगता है ,
जैसे , हम
दण्डित किये जा रहे हैं ,
सजा ,
इतनी बीभत्स है
कि,
जब , शब्दों की तोपें
चलती हैं ,
तब , न , चाहकर भी
निःशब्द होते हैं ,
घाव सीने पर होता है ,
आह , भी नहीं
निकल पाती,
कई बार ,
प्राणान्तक पीड़ा से
निस्तेज कर चूका है ,
ऐसा , क्या पाप है ?
जो पीछा नहीं छोड़ता ?
पल -पल हमारी
धडकनों का हिसाब
मांग रहा है ,
वो ,
कोई और नहीं ,
हमारे ही ख्वावों का
अंशांश है .


रेनू शर्मा

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