भू के अन्तः में
दबी -छिपी
ज्वाला सी ।
दिन -रात उफनती
नदी सी ।
पल -पल घोंसला
सभालती गौरैया सी ।
दरख्त के खोंगल में
छुपे शिशु तोतों को
दाना चुगाती तोती सी ।
दूर विन्ध्य के जंगल में
ऊंचे वृक्ष पर बैठे
गीद को उड़ना सिखाती गिद्द सी ।
बाड़े की ओट में
बैठी ,
बछडे का मुंह चाटती
गैया सी ।
भूखे बच्चों के लिए
शिकार लाती शेरनी सी ।
माँ ,
हर दिन बच्चों में
जीती मरती है ,
विशाल ह्र्दाया माँ
तुझे सलाम ।
रेनू ....
माँ ,
ReplyDeleteहर दिन बच्चों में
जीती मरती है ,
wah ! kya baat hai !!!!
mat pooछ्o ki kya hoti hai !
maan bachchon ki jaan hoti hai.
... sundar, atisundar !!!
ReplyDeletebahut hi sundar kavita.
ReplyDeleteseedhe dil ko dastak deti hain panktiyan
meri haardik shubhkamnayen