Sunday, May 10, 2009

माँ


भू के अन्तः में

दबी -छिपी

ज्वाला सी ।

दिन -रात उफनती

नदी सी ।

पल -पल घोंसला

सभालती गौरैया सी ।

दरख्त के खोंगल में

छुपे शिशु तोतों को

दाना चुगाती तोती सी ।

दूर विन्ध्य के जंगल में

ऊंचे वृक्ष पर बैठे

गीद को उड़ना सिखाती गिद्द सी ।

बाड़े की ओट में

बैठी ,

बछडे का मुंह चाटती

गैया सी ।

भूखे बच्चों के लिए

शिकार लाती शेरनी सी ।

माँ ,

हर दिन बच्चों में

जीती मरती है ,

विशाल ह्र्दाया माँ

तुझे सलाम ।

रेनू ....


3 comments:

  1. माँ ,


    हर दिन बच्चों में


    जीती मरती है ,

    wah ! kya baat hai !!!!

    mat pooछ्o ki kya hoti hai !
    maan bachchon ki jaan hoti hai.

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  2. bahut hi sundar kavita.

    seedhe dil ko dastak deti hain panktiyan


    meri haardik shubhkamnayen

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