Thursday, May 7, 2009

जाने क्यों ?


जाने क्यों ?

गाँव की भीनी

खुशबू में ,

अब ,

शहर की महक आती है ।

मिटटी के घडे का पानी

अब ,

बोतलों में बंद बिकता है ।

चिलचिलाती धुप में

जब ,

चक्कन और ताश की

बाजी चलती थी

अब , सास बहु की नोंक -झोंक

और वीडियो गेम चलते हैं ।

सुहानी शाम को

बरगद की छाँव तले

जब ,

मल्हार , फाग , तराने

आल्हा - ऊदल के दीवाने

अड़ जाया करते थे ,

अब ,

सिनेमाघर के बंद

दरवाजे में

अंग्रेजी साहित्य

गर्माता है ।

रात की चाँदनी में

नीले आकाश की

चादर तले

जब ,

तारों से बातें होतीं थीं ,

ग्रहों पर ,

बसेरा बनता था ।

अब ,

रात भर खुमारी में

घिरा इंसान

दिन की धुप को

कोसता है ।

जाने क्यों ?.....

रेनू शर्मा ...

2 comments:

  1. ... बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति, प्रसंशनीय।

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  2. जब ,


    मल्हार , फाग , तराने


    आल्हा - ऊदल के दीवाने


    अड़ जाया करते थे ,


    अब ,


    सिनेमाघर के बंद


    दरवाजे में


    अंग्रेजी साहित्य


    गर्माता है ।
    wah ji wah kya baat hai ! padhkar apne bachpan ki yaad taaza ho gai . magar hai! ab to shayad umra bhar yaadien hi rahengi kyonki ab aalhaa aur bhajan ,swaang to bas yaad ban ke rah gaye. kaaahs hamaare gaaon ki wo khususiat fir laut sakti !!!!

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