Wednesday, September 16, 2009

आखिरी शाम का दिया


यारों का संदेश

मोबाईल पर

चस्पा होता है ,

कभी ,

फोन घनघनाता है ,

कभी ,

एकांत में

मंत्रणा हो लेती है ,

रात की खुमारी

अभी , जाती भी नही

कि,

सुबह का निमंत्रण

बार -बार

मुंह में रस

घोलता है ,

कभी ,

कला कुत्ता ,

कभी,

लाल रात

कभी ,

जिन ,कभी ,

हस्ताक्षर

बिसलरी जल के साथ

विलीन होकर ,

निमिष भर में ,

हलक के पार

चली जाती है ,

कहकहे , मस्ती ,फब्तियां

दिल्लगी ,राजनीति और कभी

मदनीति ,

सबका कॉकटेल

परोसा जाता है ,

आजादी का नशा

भुला देता है

घर -परिवार -बच्चे ,

अब ,

किसे भाता है

मुसीबतों का स्मरण

मद ,चषक के

चषक पर चषक

जब ,

उदराग्रस्त होते हैं ,

तब ,

रजनोत्संग के लिए

लालायित ,

प्रकम्पित भंवरे सा

प्रेम का भरम जाल

फैलाता ,

भिनभिनाता है ,

कभी ,

आंखों को लाल

करता है ,

कभी ,

पंख फड फडाता है ,

कभी ,

कलिका की बेरुखी पर

विष वमन कर

वहीं का वहीं ,

ढेर हो जाता है ,

इस ...

अगन की तपन

जला रही है ,

अनेकों भावनाओं ,

विचारों और परिवारों को ,

चषक का कषाय पन

दिलों को ,

छील रहा है ,

किसी अपराधी की

देह सा , जो

निरपराध है ,

कब तक,

अदृश्य कर्म

दृश्य दंड से ,

प्रकट होते रहेंगे ?

जीवन की

धरोहर सा , वक्त

सिसकते कट गया ,

अब ,

आखिरी शाम को

स्नेह का दिया

जलाकर तो देखो !!!

एक ,

पतंगी आ ही मरेगी ।

रेनू ...

1 comment:

  1. patangi marneko bekarar hai kintu pahele sneha ka deep to jalana padta hai yeha anivarya sharth hai renu ji achhee kavita hai.

    ReplyDelete