फूल वाली
फ्राक पहने ,
सुबह से
नहा -धोकर ,
बालों में
क्लिप लगाये ,
नंगे पैर ,
एक घर से
दूसरे घर ,
खींची जाती थी ,
राजो !! आजा ,
बुलाया जाता था ,
माथे पर लाल
टीका लगाये ,
पैरों पर महावर,
हाथ पर
एक टका रखकर
कन्या ,
पूज दी जाती थी ।
आँगन में
दरी बिछाकर ,
थाली में
पूडी , हलुआ
खीर , चना सब ,
देवी को
चढ़ता था ।
लंबा घूँघट डाले
चाची,
ढोक लगाती थी ,
बाहर
चबूतरे पर बैठा
काका ,
दूर से दौड़ता था ,
जय ,हो मैया की ,
आज ,
वही काका -काकी
गर्भ में ठहरी ,
नातिन को
मरवाना चाहते हैं ,
कैसी , देवी ?
कैसा पूजन था
अभी तक ?
रेनू ...
विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!
ReplyDelete