Saturday, June 20, 2009

पिता


वटवृक्ष सा

विस्तृत , गंभीर

सघन , शीतल

पिता ,

दूर से आती

दुराव , घृणा

अशांति से

घरोंदे को

बचा लेता है ।

सूरज की तपती

घूप से

छुपा कर ,

भीनी छाँव

देता है ।

हौसला गर

खोने लगे

तब ,

बैशाखी बन

टिक जाता है ।

छोटी -छोटी

मुस्कान पर

चहकने वाला , पिता ,

आंसुओं के साथ

बहने लगता है ।

जीवन पथ का

दिया बन ,

राह सुझाता है ,

पिता ।

रेनू ...

1 comment:

  1. पसंद आई ,बाकी बाद में पढेंगे | इतने ब्लोगों में मुख्य कौन सा है ? जैसे मेरा कबीरा है

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