वटवृक्ष सा
विस्तृत , गंभीर
सघन , शीतल
पिता ,
दूर से आती
दुराव , घृणा
अशांति से
घरोंदे को
बचा लेता है ।
सूरज की तपती
घूप से
छुपा कर ,
भीनी छाँव
देता है ।
हौसला गर
खोने लगे
तब ,
बैशाखी बन
टिक जाता है ।
छोटी -छोटी
मुस्कान पर
चहकने वाला , पिता ,
आंसुओं के साथ
बहने लगता है ।
जीवन पथ का
दिया बन ,
राह सुझाता है ,
पिता ।
रेनू ...
पसंद आई ,बाकी बाद में पढेंगे | इतने ब्लोगों में मुख्य कौन सा है ? जैसे मेरा कबीरा है
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