ये दिल्ली , ये पालम , गधों के लिए है ,
ये रसिया , ये बालम , गधों के लिए है ।
जो खेतों में दीखे वो फसली गधा है ,
जो माइक पर चीखे वो , असली गधा है ।
मैं, क्या बक रहा हूँ , ये क्या कह गया हूँ ,
नशे की पिनक में , कहाँ बह गया हूँ ।
आदित्य जी ने व्यंगात्मक आक्षेप यदि समाज के श्रेष्ठ लोगों के लिए किया है , तब उसी व्यंग को अपनी गर्दन पर भी नश्तर की तरह चला लिया है । रचना करना कोई आसन काम नही है , किसी भी स्तिथि में स्वयं को डुबो देना पड़ता है , तब ह्रदय के तार झंकृत होते हैं और भाव प्रवाहित होने लगते हैं । संवेदनाओं और जज्वातों का झंझावात ही किसी कवि को लेखन के लिए उकसाता है । उसके बाद अपनी कही बात को हजारों लोगों के सामने , भीड़ में , महत्ता से कहना अत्यधिक कठिन काम है । यह सब खूबियाँ कवियों में समाहित होतीं हैं ।
बारह बरस पहले भोपाल के व्यवसायिक मेले में एक हास्य कवि सम्मलेन की जगमगाती रात में पहली बार इन श्रेष्ठ कवियों को सुनने का अवसर मिला । शीत की कंपकपाती रात थी , अख़बारों में कवियों की नामावली लिखी थी - श्री गोपाल दास नीरज , आदित्य जी , सुरेन्द्र शर्मा जी , अशोक चक्रधर जी ,। और सात आठ कवि -कवियित्री थे , मंच सञ्चालन मेरठ के युवा कवि कुमार विश्वास कर रहे थे । हजारों की भीड़ में हम वी. आई. पी पास लेकर आगे बैठने का प्रयास कर रहे थे जबकि हमारा पास उस समय फेल हो गया जब , मध्य प्रदेश के तमाम मंत्री नेता जम कर बैठ गए ।
किसी तरह जगह बनने के बाद पीछे मुड कर देखा तो , पंडाल का छोर नजर नही आया । ग्यारह बजे के बाद जब शब्दों की दुनाली चलनी शुरू हुई तब , सबके होश उड़ रहे थे । चक्रधर जी ने साहित्यिक शब्दों की चाशनी में लबरेज किसी युवती को जबरदस्ती नदी पार कराने का भरसक प्रयास किया था । कुमार विश्वास मंच सञ्चालन की विशेष योग्यता का परिचय दे रहे थे । आदित्य जी ने श्रोताओं को बांधना शुरू किया -
शेर से दहाडो मत , हाथी से चिंघाड़ओ मत ,
ज्यादा गला फाडो मत , श्रोता डर जायेंगे ,
घर के सताए हुए आए हैं , बेचारे यहाँ ,
यहाँ भी सताओगे , तो ये किधर जायेंगे ?
फ़िर चिरपरिचित शैली में लाल किले की प्राचीर से जो उद्घोष किया था , वह कर डाला । भाव , विचार , शब्द और व्यंग की डोर से श्रोताओं को खींचना कुछ ही रचनाकारों के बस की बात है । सुरेन्द्र शर्मा जी ने अपनी श्री मतीजी को हर समय अपने साथ बांधकर रखने का बीडा उठाया है , तो उन्होंने वह कसम भी पूरी की ।
एक अनोखा रोमांच हमारी रगों में प्रवाहित हो रहा था । एक व्यक्ति बीच में उठा , सबको लांघता हुआ जाने लगा शायद लघु शंका निवारण करना हो , तभी आदित्य जी बोल पड़े - भाई मेरे कहाँ जा रहा है ? बैठे रहो , रात की इस तन्हाई में घर में घुसोगे तो पत्नी भी दरवाजा नही खोलेगी , वापस यहीं आना पड़ेगा । उनकी शब्द अदायगी इतनी मजाकिया थी कि पूरा पांडाल खिलखिला उठा ।
रह -रह कर कवि सम्मलेन हमारे मन को कुरेद रहा है । प्रदीप चौबे जी मिश्री घोलकर शब्दों की कटार चला रहे थे । नीरज जी अंत तक मंच पर नहीं पधार पाए शायद मैं की अधिकता में हम सबको बिसार दिया था । उस हास्य कवि सम्मलेन की यादें स्मृत हो आईं हैं । कैसे सम्मोहन का जाल बिछ जाता है , एक -एक शब्द की हुंकार को हम निगलने लगते हैं । जब किसी कवि की रचना से श्रृंगार रस टपकता है तब , बरबस ही हम स्वेद की तरंगों से झंकृत हो उठते हैं , कैसे वीर रस की कविता सुनकर हम कवि के साथ ही वीर नायक बन देश के प्रहरी बन जाते हैं । अजब सा जादू होता है कवियों की शब्दावली में , उनकी कलम की धार में ।
ओम जी को जब देखा तो वे विष्णु के वामन रूप धारी ही लगे । माँ के प्रति शब्दों का समर्पण इतना प्रभावी था कि ममत्व के रस से सबको घायल कर दिया था । संबंधों को लेकर जो रिक्तता हम सभी के दिलों में बैठती जा रही है वह ओम जी के आने से घुलने लगी थी ।
पिता ने जब ,
बेटे की अंगुली पकड़ रखी है ,
सच सारे सपने हैं ,
घर में अगर पिता है ,
तो बाहर के सारे
खिलोने अपने हैं ।
अब इन नातों की शून्यता को कवि लाड शिंग गूर्जर ने भी अनुभव की , अन्तिम बानगी में माँ को सब कुछ समर्पित कर दिया ।
हमारी पीर पर वो मोम सी पिघलती है ,
कभी मशाल , कभी दीप बनकर जलती है ,
यकीन मानिये जहाँ -जहाँ भी जाते हैं ,
दुआएं माँ की सदा साथ चलती हैं ।
नीरज पुरी ने बेटियों को दिल से लगा लिया , ओज , संवेदना और हास्य को शब्दों की माला में गूंथकर जो हार मंच पर चढाया जाता है , वह हर कवि की योग्यता की खुली किताब ही होता है । त्याग , समर्पण और आध्यात्म ने ही आदित्य जी से कहलवा दिया कि -
मृत्यु का बुलाबा जब भेजेगा ,
तो आ जाऊंगा ।
तालियाँ न पीटोगे तो ,
गालियाँ सुनाऊंगा ।
साथ न दोगे तो ,
फसाद कर जाऊंगा ....
और अन्तत : फसाद करते हुए ही सब लोग विदा हो गए ।
कविताई रिक्तता तो चिर स्थाई है । उनके मंगल पथ के लिए ईश्वर से प्रार्थना है ।
जीवन की प्राप्ति ,
काल की अंधी दौड़ है ।
निरंतर काल को ही समर्पित ,
चिरकाल तक .....
रेनू शर्मा ...
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