Thursday, August 9, 2012

जिन्दगी के तूफ़ान


मिनी शर्मा पहली बार लिखने का प्रयास कर रहीं हैं , आस -पास के दुःख दर्द को शब्दों मैं बटोरने की कोशिश कर रहीं हैं , धीरे -धीरे लेखन में करिश्मा भी पैदा हो जायेगा , ऐसी आशा है , अभी तक जो कुछ भी लिखा है , बहुत ही मार्मिक और संवेदन शील है , विश्वास है , हम निरंतर उनकी रचनाएँ पढ़ते रहेंगे .


बह रहे हैं , अरमा ,
जल रहे हैं , हम ,
झुलस रही हैं , खुशियाँ
सिमट रहे हैं , हम ,

जल रही हैं , खुशियाँ
तो , दिए क्या जलाएं ,
राख दिल पर , छा रही
तो , अरमा क्या सजाएँ ,

जल रहा है , दिल
चिंगारी निकल रही है ,
हवा न दिखाओ
आग भड़क रही है ,

अपने गम न बाँटो ,
दुनियां हंसी उड़ाएगी ,
आंसुओं ने हमसे ,
दगा कर दिया ,
जाम को अपने में
शामिल कर लिया ,

दीवाने से हम , उन्हें
याद किया करते हैं ,
वो , अंजान से हमें
नज़र अंदाज किया करते हैं ,

जिंदगी के तूफ़ान से ,
कश्ती निकालना चाहते हैं ,
इन , ग़मों को , हंसी में
छुपा लेना चाहते हैं ,

वे , हमारी कैद चाहते हैं ,
रिहाई नहीं , हम ,
मुजरिम हुए जाते हैं ,
उन्हें , परवाह ही नहीं ,

हम , दिया बनकर जलते हैं ,
वे , पतंगा न बन सके ,
हम, जलकर यूं
मुहब्बत को रौशन करते हैं ,
वे , रौशनी को उजाला न दे सके ,

हम , जलते- जलते
चिराग बन गए ,
अरमा यूं जले कि
राख बन गए ,

हम , कलि बनकर
इठलाते ही रहे ,
वे , भंवरा बनकर
उड़ गए ,

हम , यूं ही ,
कचनार से , बल खाते रहे ,
वे , सरे आम चंपा -चमेली
का , पान करते रहे ,

हम , देख रहे हैं
उन वादियों को
जब , तुम , इस ओर
गुंजार करोगे ,
कभी , तो , कलि से
मिलन करोगे ,
और हम, सुबह का
इंतजार करेंगे .

मिनी शर्मा

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