भीतर भयानक तूफान सा
उठ रहा था ,
ये , कौन है ? जो
हमें , झकझोर रहा है ,
तोड़कर , बिखराने का
प्रयास कर रहा है ,
अभी , तो हम मिले ही थे ,
सब ,कुछ खुशगंवार था
फिर ,क्यों और कैसे
किसी ने हमारे नीड से
तिनका खींचने की
जुर्रत की ,
सरफ़िरों को नहीं पता ,
हमारे संरक्षक दिव्यात्मा हैं
हमारी ऊर्जा
परस्पर मिलकर
प्रज्वलित हो रही है
एक , कवच बन गया है ,
अब , लहरें शांत हो चली हैं
हम घरोंदे के अंदर
जुगनू सजा रहे हैं।
रेनू शर्मा
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