पृथ्वी की कमनीयता
अलौकिकता , भौतिकता
सृजनात्मकता और मानवीय
पाशविक ,नभचर , जलचर ,
थलचर , सभी प्रति
सहृदयता ,नम्रता , शीतलता को
जानकर , लगा
जब हम , अंतरिक्ष की
गहराई में होंगे ,
तब हम , देख पाएंगे
धरती का घूमना
हिलना -डुलना , विचरना
और असीमित स्वतंत्रता का
भान होते ही , मैं
जाने कहाँ , खो गई
न आकाश , न जमीन ,न कोई
चाँद -तारे
अँधेरी रात के घनघोर
छोर पर , चाकर घिन्नी बनती
मैं , वापस आने के लिए
छटपटाने लगी ,
कैसा , आकर्षण है ?
इस जीवन के रहस्य का।
रेनू शर्मा
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