Sunday, June 15, 2014

संतुष्टि

संतुष्टि की एक रेखा
बन गई थी ,
एक रिश्ता जिसे ,
अनचाहे दिनों में
संचित हुआ सा समझ
रही थी , जब , एकाकी
जीवन की आपाधापी से
ऊब उठेगा मन ,तब
मीठा सा यह रिश्ता
पलकें बिछा देगा , शायद
इसी विचार मात्र से ह्रदय
स्पंदित हो उठता था ,
लेकिन ,अचानक इस रिश्ते की
दीवार भरभराकर गिर गई ,
न कोई भूकम्प था , न कोई
तूफ़ान आया था ,
एक , गहन सोचनीय
अवस्था से गुजरी
रिश्ते की मर्यादा षड्यंत्र
का शिकार बन गई ,
वे , ही प्रतीक्षा करने लगे
किसी , विकार युक्त सोच की
क्या / हुआ होगा उस पल ,
जब , रिश्तों की वास्तविकता यूँ
शांतिरपन और अमर्यादित
व्यवहार से जाहिर हुई होगी ,
मैं , और अधिक परिपक्व और
संतुष्ट हो गई अपने रिश्तों से।

रेनू शर्मा २४/७/१२ 

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