Sunday, June 29, 2014

हम और वे

हम अपने ही
सुरक्षा चक्रों में
भटक गए हैं ,
वो , अपनी नई
इबारत  लिख रहे हैं ,
अपने नियम , सिद्धांत
फलसफे बना रहे हैं ,
हम , अपनी भावनाओं के
समंदर को बेवजह
उन पर उड़ेल रहे हैं ,
न , वे , सोच रहे हैं ,
न ,वे ,समझ रहे हैं ,
न ,वे , दूर जा रहे हैं ,
न ,वे ,पास आ रहे हैं ,
हम , रात भर करवटें
बदलते हुए ,
उन्हीं के कवच
बन रहे हैं और वे ,
न , जाने , कबसे
हमारे आशियाँ से कूंच
कर चुके हैं।

रेनू शर्मा  

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