Friday, June 27, 2014

दिए जला लो

नदी के ,अनवरत प्रवाहित
जल के , पुनीत वितान पर
झिल -मिल दिए जल रहे थे ,
प्रतिबिम्बित दिए
सितारों से ,
दमक रहे थे।
ठीक , मेरे रिश्तों से ,
हौले -हौले ,
लहरों के आँचल में
रौशनी समाने लगी ,
हिचकोले खाते दिए
बुझते गए , नदी के
दामन में , ठीक
मेरे , रिश्तों से।
नदी के तट पर
नाजुक अँगुलियों के पोर से
जल -धारा को ,
सहला रही थी , ताकि
दिए आगे बढ़ते रहें ,
पर , अधिक पल
निहार न सकी  , ठीक
मेरे , रिश्तों सा ,
जल  को स्पर्श किया
और वीतरागिनी सी चल दी
घाट की सीढ़ी पर
साध्वी खड़ी थी ,
अपलक मुझे निहारती सी
बोल पड़ी ,
दिए , तो जला लो , पर
रिश्ते !!!

रेनू शर्मा 

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