Sunday, June 15, 2014

ऊर्जा की मशाल

हमने जाना है ,
कैसे ? अपने बच्चे की
रूह में रूह बनकर
उतरा जाता है ,
किसी , ठोकर का लगना हो
या , खुरसट का उपटना हो
या , शरीर के किसी कौने से
खुरच खोजकर
बेंड -एड लगाना हो ,
उसके ,
अंतर्मन की पीड़ा ,
घाव की जलन ,
अपनत्व भरे स्पर्श की ललक
सब कुछ पढ़कर
हमने , सीने में छुपाया है ,
बच्चे की शबनमी ढलकती
आँखों से , मोतियों से आंसूं
जाने कितनी बार
हमारी आँखों से भी झरे हैं ,
बच्चा , अथाह पीड़ा को
गरल सा पी रहा है ,
तब हम , अपनी रूह की
मशाल बना ,उसे
ऊर्जा दे रहे हैं ,
उसके माथे की सिकन
पढ़ रहे हैं ,
कभी -कभी हमें देखकर
मुस्करा रहा है ,
यही , हमारी विजय है।

रेनू शर्मा २१/ ५/ १२ 

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