Saturday, 3 January 2009
पथिक
ओ , जीवन पथ पर चलने वाले पथिक !! देख रहे हो इस पथ पर बिखरी धूल ve हैं , जो तुमसे पहले आकर चले गए , ये निशानी उन्हीं की हैं इसी पर आगे जाने वालों के बनते हैं " पद - चिन्ह " मत घबराओ कि लक्ष्य तक नही पहुँच पाओगे । मत हों उदास कि लक्ष्य है दूर , याद रखो !!! तुम्हारे हर उठे , कदम के साथ , होगा तुम्हारा लक्ष्य , उतना ही निकट । पथिक !!! न रुको , चलते रहो , रुक गए तो , मिल जाओगे इस धूल मैं , तुम चलो , चले चलो , छोड़कर ""पदचिन्ह "" चलते रहो , चलते रहो । तब समझ पाओगे , पथ ही बन गया है , लक्ष्य तुम्हारा । मत रुकना , कितने ही पुकारेंगे पीछे से तुम्हें । तुम चलते ही जाना । पीछे मुड़कर देखा तो , खा जाओगे ठोकर , गिरोगे इसी धूल मैं । रखना दृष्टि सामने क्षितिज पर , उसे छू लेना ही तो है , लक्ष्य तुम्हारा । जब भी , पा जाओगे अपना लक्ष्य , समझ लो , तब ही स्वयं को भी पा जाओगे , " पथिक "" शैलेन्द्र शर्मा .......
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