Friday, March 6, 2009

असीमित सा

Friday, 16 January 2009

असीमित सा

एकटक देख रही थी
उसे ,
अभी -अभी
शबनम मैं नहाया सा
लग रहा था ।
देह की गंध
खींच रही थी , मुझे
उसकी बांहों के बीच ,
दिल की तहों मैं
जाने क्या स्पंदित सा हुआ ।
सिमटकर ,
बिखर गई , वहीं ।
उसकी सांसे
समां रही थीं
मेरी सांसों के आर -पार ।
एक नशा सा छा रहा था
हौले -हौले ,
वो , जड़ हो जाना
चाहता था , वहीं की वहीं
पर ,
गार्ड की , हरी झंडी ने
मुझे विवश कर दिया ।
उसकी , हथेली को चूम कर
मैं , ओझल हो गई ।
वह , मुझमें
असीमित सा समाकर
सीमा पर
चला गया ।
रेनू शर्मा .....

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