Thursday, 22 January 2009
शायद
वो , मेरे साथ ही होगा
पर , मैं
बिस्तर की सलवटों
में उलझी ,
अथाह पीड़ा को ,
सीने से लगाये ,
थोड़े से पलों को
समेट रही होउंगी ,
वो , मेरा हाथ थामे होगा
पर , मैं
हौले -हौले हथेली
से खिसककर
अंगुली के पोर पर ,
ठहर जाउंगी ,
कुछ और पल
जीने के लिए ।
वो , कभी माथा चूमेगा
और , कभी बिछुड़ने की
बैचेनी में ,
आंसुओं में डूब जाएगा ।
तब , मैं
विराट की चकाचौंध में
धीरे -धीरे विलीन होती
चली जाउंगी ,
घनघोर रात के
सन्नाटे में ,
मैं ,
मुक्त हो जाउंगी ,
शायद !!
रेनू ....
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