Friday, March 6, 2009

प्यार तुम्हारा प्रीत तुम्हारी

Saturday, 17 January 2009

प्यार तुम्हारा प्रीत तुम्हारी

तनहा राहें तनहा राही
शाम सुहानी याद पुरानी ,
मीठी -मीठी प्यारी -प्यारी
सूनेपन को चीर रही थी ,
जैसे कोई किरण आशा की
इस निराश जीवन में आए ,
प्यार तुम्हारा , प्रीत तुम्हारी
जख्म तुम्हारा , दवा तुम्हारी
देखा अम्बर भीगा मौसम
मचल गया दिल
जख्म कर गई ,
याद तुम्हारी , चाह तुम्हारी
प्यार तुम्हारा , प्रीत तुम्हारी ।
जैसे नींद आंख के अन्दर
याद तुम्हारी दिल के अन्दर ,
प्रीत तुम्हारी मन के अन्दर
दर्द तुम्हारा तन के अन्दर ।
और मैं , उन तनहा राहों पर
कड़ी धूप में , जले रेत में
प्यार तुम्हारा ठंडक जैसा ,
याद तुम्हारी साये जैसी ,
प्रीत तुम्हारी बारिश जैसी
जला रही थी दिल को मेरे ,
मन को घेरे , तन को मेरे ।
और है जबसे , तनहा जीवन
फंसा हुआ हूँ , एक भंवर में
इस समुद्र की एक लहर में
तभी अचानक तूफ़ान आया
और साथ में लाया अपने
प्यार तुम्हारा नौका जैसा ,
याद तुम्हारी साहिल जैसी ,
प्रीत तुम्हारी ढाढस जैसी ,
लगा रही थी मुझे किनारे ,
तभी तुम्हारे आँचल से
फ़िर लिपट गया मैं ,
और चल दिया
साथ तुम्हारे
पीछे छोडे ,
तनहा जीवन
सूनसान राहें,
वीरान मंजिल ।
विमल ......

No comments:

Post a Comment