Monday, 26 January 2009
तब आता है बसंत
फूलों भरी शाख पर
बुलबुल फुदक कर
गाना गाये , तब
आता है बसंत ।
टिल-टिल करती
गिल्लू , डाली -डाली
दौड़ लगाती ,तब
आता है बसंत ।
ऊँचीं फगुनी पर
मटकती हमिंग ,
हवा में पतंगे चुने
तब , आता है बसंत ।
इतराती , इठलाती
दूर तक उड़ती
तितलियाँ ,
फूलों को चूम कर निकलें
तब , आता है बसंत ।
पेड पर अटके
पीले पत्ते
हवा में बिखरें ,तब
आता है बसंत ।
बौराई आम की डालियाँ
भंवरे को बुलाएँ , तब
आता है बसंत ।
सरसों के खेत में
लहराते फूल
सुगंध फैलाकर
मुझे बुलाएँ , तब
आता है बसंत ।
आहट पर पहरा रख
चुपके से प्रीतम
आकर घेर ले , तब
आता है बसंत ।
रेनू ......
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