टेसू फूलकर
लाल हो गया है ,
पतझड़ थमता नही ,
बसंत रुकता नहीं
बादल घुमड़ते हैं ,
झमाझम बरसते हैं
पर , इस बार
फागुन ,
रंगता नही ।
खामोश है
तन और मन ,
ख्वाबों का सैलाव
दरक सा रहा है ।
वजूद
मिटने की
छटपटाहट है ।
हर रोज झाड़ रहे हैं ,
पत्तों की तरह
उमंगों के फूल ,
खंडहर सी खड़ी हूँ
मेरे हौसले सा ,
बसंत ,
सुबक रहा है ।
रेनू ....
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