Tuesday, March 10, 2009

रंग सा बरस रहा है


हवाओं से

बात करती

गति ,

मनो रेस

खेल रही है ।

नदी , झरने

ताल , तलैया

पेड , पौधे

सब ,

दौड़ रहे हैं

साथ -साथ ।

यह , दृष्टि भ्रम है

मैं , जानती हूँ ।

मेरे रुकते ही

सब ,

थम जाते हैं ।

मैं , बहक रही हूँ ।

दूर फिजाओं में

बादल घुमड़ रहे हैं

रंग सा बरस रहा है ,

भीतर बैठी में ,

अन्दर तक

भींग रही हूँ ।

क्षितिज लापता सा

हो रहा है ।

मेरे पास ही प्रकृति

कहकहे लगा रही है

मनो ,

संगीत छेड़ दिया हो ,

गति थम गई है ।

रंग सा बरस रहा है

हमारे आस -पास ।

रेनू शर्मा .......

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