हवाओं से
बात करती
गति ,
मनो रेस
खेल रही है ।
नदी , झरने
ताल , तलैया
पेड , पौधे
सब ,
दौड़ रहे हैं
साथ -साथ ।
यह , दृष्टि भ्रम है
मैं , जानती हूँ ।
मेरे रुकते ही
सब ,
थम जाते हैं ।
मैं , बहक रही हूँ ।
दूर फिजाओं में
बादल घुमड़ रहे हैं
रंग सा बरस रहा है ,
भीतर बैठी में ,
अन्दर तक
भींग रही हूँ ।
क्षितिज लापता सा
हो रहा है ।
मेरे पास ही प्रकृति
कहकहे लगा रही है
मनो ,
संगीत छेड़ दिया हो ,
गति थम गई है ।
रंग सा बरस रहा है
हमारे आस -पास ।
रेनू शर्मा .......
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