Saturday, March 14, 2009

टूटना मत


जब , छोटी थी तब ,

मदमस्त , बेखबर

तितली सी ,

कभी इधर

कभी उधर ,

मंडराती थी ।

कभी भाई से लड़ना ,

सखी से मिलना ,

माँ से उलझना ,

पिता से अटकना

सब ,

बेलगाम चलता था ।

अब , जब , पीहर

पीछे छूट गया है ,

तब ,

माँ , कहती है -

वे ही तुम्हारे माता -पिता हैं

पिता कहते हैं -

वही तुम्हारा घर है ,

भाई कहता है -

टूटना मत ,

सखी कहती है -

बिखरना मत ,

मैं , कहती हूँ -

मुझे पहले बताया होता ,

क्या , नही करना ।

क्यों ?

मैं , फ़िर से

बेटी नही बन सकती ।

रेनू ....

No comments:

Post a Comment