Sunday, 1 February 2009
ठहराव
गुज़रे ज़माने की सभी यादें
संजो कर रखी हैं इस तरह
जैसे ऑफिस की अलमारी में
बरसों से बंद फाइलों का पैकेट
ड्राइंगरूम की दीवारों पर लगी पेंटिंग
घर के बगीचे में लगा रातरानी का पेड़
यादें कभी दिलाती हैं एहसास
समुद्र में अठखेलियाँ करती लहरों का
चंद्रमा की कलाहों की तरह
अविरल, अविराम, अविराक्त
विमल...
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