Friday, March 6, 2009

स्वप्न

स्वप्न

सावन के महीने में ,
ठंडी हवाओं में ,
झरती फुहारों ,
भीगे से तनमन में ,
सूने से चितवन में ,
गदराये मौसम में
प्रिये याद आती है ।
मन अधूरा तन अधूरा
मैं , अधूरा स्वप्न पूरा ।
पाँव में महावर ,
मेहदी है हाथों में ,
आखों में कजरा ,
गजरा है बालों में ,
चम्पई चितवन है ,
तन मन महकता है ,
होठों पे प्यास है ,
आस है आंखों में , और
चहरे पे चाँद से
घूँघट है छोटा सा ,
आलिंगन प्रियतम का
घेरा है बांहों का ,
होठों पे चुम्बन , बस
ख़ुद अपने आप को
पिया भूल जाता है ,
स्वप्न टूट जाता है ।
रेनू ....

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